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राइडर का शोषण, जोमैटो की मौज

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4000 करोड़ के फूड डिलीवरी के बाजार में राइडर इस धंधे के की सिर्फ रीढ़ की हड्डी ही नहीं है बल्कि हाथ-पांव और आंख-कान भी है| दिन रात सर्दी गर्मी बरसात की परवाह किए बिना राइडर लगातार कंपनी के लिए रुपए का पहाड़ बनाते रहते है, इस काम को करने में दिनभर उन सड़कों पर भागे भागे फिरते हैं जिन पर चलने में सिर्फ गाड़ियां और तेल नहीं लगती बल्कि पूरी जान तक खप जाती है| शहर में जब लू, सर्दी, बरसात, धुंध और प्रदूषण के कारण लोग घरों से निकलने में परहेज करते हैं तब राइडर दिनभर सड़कों पर यह सब कुछ झेलते हुए घर-घर ऑर्डर पहुंचाते  हैं| कोविड को हम भूले नहीं है जब पैसे वाले डरे हुए लोगों के घर पर राइडरो ने अपनी जान दांव पर लगाकर  खाना दवाओं और न जाने क्या क्या पहुंचाया पर बदले में पैसों के पहाड़ पर बैठी कंपनियां और उनके मालिक आखिर इनको क्या देते हैं? ठेका व्यवस्था का आधुनिक रूप, गिग्स?   
राइडर कंपनी का मजदूर नहीं कहा जाता बल्कि पार्टनर कहा जाता है यह ऐसी पार्टनरशिप होती है जिसका फायदा पूरा का पूरा कंपनी को जाता है और नुकसान का खतरा राइडर उठाता है| ऑर्डर डीले हो जाए, कस्टमर ऑर्डर कैंसिल कर दे, और तो और ऐसी घटनाएं भी देखने को मिलती है जिसमें कस्टमर ने राइडर का मोबाइल छीन लिया, पेमेंट मांगने पर राइडर पर गोली चला दी, अराजक तत्वों ने खाना छीनने के लिए राइडर को मारा-पीटा| ऐसी किसी भी दुर्घटना के शिकार हो जाने की स्थिति में राइडर को कोई हेल्पलाइन नंबर  तक नहीं दिया गया है बल्कि उसे मैनेजर  के भरोसे छोड़ दिया गया है यह मैनेजर होता तो कंपनी  का नौकर ही है पर व्यवहार अंग्रेजों के जमीदार जैसा करता है इसका काम राइडर की समस्याओं को राइडर के सर ही डाल देना होता है| पेआउट बहुत कम है तो ज्यादा देर ऑनलाइन रहो, पेट्रोल का खर्चा भी नहीं निकल रहा है तो  स्टार गिग्स करो, स्टार गिग्स ही नहीं मिल रही है तो यह तो एप्प के एल्गोरिदम पर निर्भर है,  तब हम काम कैसे करें? करना है तो करो वरना जो ज्यादा दे वहां चले जाओ, मैनेजर अपने साथ-साथ कुछ गुंडे भी रखते हैं ताकि यदि कोई राइडर ज्यादा शोर मचाए तो उसे डराया धमकाया जा सके| बेरोजगारी के इस दौर में राइडर मजबूर है या तो इस शोषण को झेलते हुए घर चलाए या फिर बेरोजगारों की फौज में शामिल हो जाए और फिर आत्महत्या या अपराध में से किसी एक रास्ते पर बढ़ जाए| 
समझौता बराबरी के लोगों में होता है कंपनी भले हमें पार्टनर कहे लेकिन हम इन हजारों करोड़ की कंपनियों के सामने अकेले कुछ भी नहीं| एक राइडर अपनी समस्याओं को लेकर कंपनी से अपनी मांगे पूरी करवा सकता है? राइडर लाखों की तनख्वाह नहीं मांग रहे उनकी मांगों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो कंपनी पूरा ना कर सके| हमें अगर अपना हक लेना है अपनी मांगों को पूरा करवाना है तो एक  होना होगा और संघर्ष के लिए एकजुटता का प्रदर्शन करना ही होगा| बिना एकजुट हुए ना तो हम यह संघर्ष कर सकते हैं ना ही कंपनी हमें गंभीरता से लेगी आखिर बटे हुए मजदूरों से बेहतर कंपनी के लिए क्या होगा| संगठन में ही हमारी शक्ति है संगठित होकर ही हम अपने हकों के लिए लड़ सकते हैं

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